ওয়া আলাইকুমুস-সালাম ওয়া রাহমাতুল্লাহি ওয়া বারাকাতুহু।
বিসমিল্লাহির রাহমানির রাহিম।
জবাবঃ-
আলহামদুলিল্লাহ!
হাদীসে যেই প্রাণীকে হত্যা করার কথা বলা হয়েছে,সেট হল টিকটিকি। এটাই সর্বাধিক বিশুদ্ধ কথা।
উল্লেখ্য, অনেকেই গিরগিটি (কোন কোন এলাকায় কাঁকলাস, ডাহিন, রক্তচোষা বলে) মারতে বলেন। এটা ঠিক নয়। কারণ হাদিসে وزغ শব্দ এসেছে যার অর্থ টিকটিকি।‘আল-ওয়াযাগ’ (اَلْوَزَغُ) শব্দের উর্দু অনুবাদ ‘ছিপকলী’ এর অর্থ টিকটিকি। (ফ‘রহঙ্গ-ই-রববানী; পৃঃ ২৬০; ফরহঙ্গ-এ-জাদীদ (উর্দু-বাংলা অভিধান)। আর গিরগিটির আরবি হ’ল حرباء (আল-মুনজিদ, পৃ: ১২৫; আল-মু‘জামুল ওয়াসীত্ব দ্র:)।
টিকটিকি এবং টিকটিকির প্রজন্মকে হত্যা করার অনেক কারণ রয়েছে,উল্লেখযোগ্য কারণ হল এটা কষ্টদায়ক প্রাণী। হ্যা, এটা অবশ্যই ঠিক যে, সে ইব্রাহিম আঃ এর আগুনকে প্রজ্বলিত করতে চেয়েছিল।
شرح النووي على مسلم (14/ 236):
"من قتل وزغةً في أول ضربة فله كذا وكذا حسنة، ومن قتلها في الضربة الثانية فله كذا وكذا حسنة لدون الأولى، وإن قتلها في الضربة الثالثة فله كذا وكذا حسنة لدون الثانية. وفي رواية: من قتل وزغًا في أول ضربة كتب له مائة حسنة وفي الثانية دون ذلك وفي الثالثة دون ذلك وفي رواية في أول ضربة سبعين حسنةً، قال أهل اللغة: الوزغ وسام أبرص جنس فسام أبرص هو كباره واتفقوا على أن الوزغ من الحشرات المؤذيات وجمعه أوزاغ ووزغان وأمر النبي صلى الله عليه وسلم بقتله وحث عليه ورغب فيه لكونه من المؤذيات وأما سبب تكثير الثواب في قتله بأول ضربة ثم ما يليها فالمقصود به الحث على المبادرة بقتله والاعتناء به وتحريس قاتله على أن يقتله بأول ضربة فإنه إذا أراد أن يضربه ضربات ربما انفلت وفات قتله."
شرح السنة ـ للإمام البغوى متنا وشرحا (12/ 197):
"عن أم شريك أن رسول الله ( صلى الله عليه وسلم ) أمر بقتل الوزغ، قال : وكان ينفخ على إبراهيم. وقال نافع عن ابن عمر : إنه كان يأمر بقتل الوزغ ويقول : هو شيطان."
تطريز رياض الصالحين (ص: 1056):
"الأمر بقتل الأوزاغ لعظم ضررها مع ما فيها من عداوة خيار العباد، وهو وإن لم يكن لنفخه تأثير في النار، إلا أن فيه إظهارًا للعداوة."
المهيأ في كشف أسرار الموطأ (2/ 351):
"وفي الصحيحين أن النبي صلى الله عليه وسلم أمر بقتل الوزغ، وأسماه فويسقًا، وقال: "كان ينفخ النار على إبراهيم". وكذلك رواه أحمد في مسنده."